शाम का समय था। रमा जी उनकी बेटी नेहा का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। उनकी बहू राधिका सुबह से ही उनका उत्साह देख रही थी। उनका बेटा प्रतीक नेहा को लेने स्टेशन गया था। जैसे ही प्रतीक की बाहर से प्रतीक के गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनी रमा जी ने झट से दरवाज़ा खोल दिया। और नेहा के आते ही उसे गले लगा लिया। क्योंकि नेहा पिछले एक साल से मायके आ नहीं पाई थी।
नेहा के पति ने मुंबई में नया बिजनेस शुरू किया था और नेहा भी समय-समय पर उनकी मदद करती थीं। इसलिए नेहा का अपने मायके में अब ज्यादा आना जाना नही हो पाता था। वैसे अप्रैल में आने का प्लान बना था। लेकिन नेहा की सासूमां की तबियत अचानक से खराब हो गई और नेहा का मायके आने का प्लान रद्द हो गया।
वैसे रोज फोन पर बात होती तो थी, लेकिन नेहा मायके इतने लंबे समय के बाद आ रही थी इसलिए रमाजी बहुत खुश थी। उसके लिए क्या करें और क्या न करें ये रमा जी समझ नहीं पा रही थीं रमाजी नें आज सारा खाना नेहा की पसंद का बनाया था।
नेहा अपनी मां के पास बैठी मजे से बातें कर रही थी। उधर राधिका ने अकेले ही पूरी रसोई की ज़िम्मेदारी संभाल ली ताकि दोनों माँ बेटी जी भरकर बाते कर सके। किचन में राधिका को अकेले कम करते देख उसकी मदद करने के लिए प्रतीक भी आ गए। दोनों नें मिलकर कुछ ही समय में सारा काम खत्म कर लिया और दोनों नेहा और रमा जी से बातचीत करने उनके कमरें में चले गए।
रात के खाने के बाद सब लोग काफी देर तक बातें करते रहे। इसलिए सभी लोगों को सोने में भी दर्भा गई। इसी कारण सभी को उठने के देरी हो गई। रविवार होने के कारण प्रतीक आज घर पर ही था। राधिका ने नाश्ते के लिए मेथी के परांठे बनाए क्योंकि नेहा को वो बहुत पसंद थे।
डाइनिंग टेबल पर प्रतीक ने खुद ही सभी को परांठे परोसे। नाश्ते के बाद प्रतीक खुद अपनी प्लेट उठाकर सिंक में ले गया। ये देखकर नेहा हैरान रह गईं। नेहा को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसके भैया शादी से पहले अपने लिए एक गिलास पानी तक नहीं लेते थे, अब खाना बनाने में भाभी की मदद कर रहे थे। नेहा को बड़ी हैरानी हुई लेकिन नेहा उस वक्त कुछ कह नहीं पाई।
नेहा अपने घर में हो रहे बदलावों को देख रही थी। पिछले एक साल में बहुत कुछ बदल गया था। सबसे बड़ा बदलाव तो उसके भाई में आया था। शादी से पहले भैय्या को हर काम में अपनी मां की मदद की जरूरत पड़ती थी। वह छोटी-छोटी चीजों के लिए अपनी मां पर निर्भर रहते थे। वो कभी अपने लिए पानी भी नहीं लेते थे। और न ही रसोई में अपनी माँ की कभी कोई मदद नहीं करते।
लेकिन अब वह ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे वह अपनी पत्नी से बहुत डरते है। खाने के बाद भी वह प्लेट को सिंक में रख आते, अपने लिए खुद पानी लेते, अपने कपड़े खुद ही अच्छेसे अलमारी में सहेज कर रखते, अपने जूते खुद पॉलिश करते, खाना बनाने में भाभी की मदद भी करते थे। नेहा को यह सब देख कर बहुत आश्चर्य हो रहा था।
दोपहर को रमा जी, प्रतीक, राधिका और नेहा बैठ कर अच्छे से बातें कर रहे थे। बातें करते करते नेहा को अचानक पकौड़े खाने की इच्छा हुई। अपनी लाडली ननद की फरमाइश सुनकर राधिका उठी और पकौड़े बनाने के लिए रसोई में चली गयी। किचन में उसकी मदद करने के लिए प्रतीक भी उसके पीछे-पीछे चला गया। प्रतीक ने फटाफट प्याज काटा और राधिका ने स्वादिष्ट पकौड़े बनाए।
पकोडे के साथ राधिका चाय भी लेकर आई। भैया को इस तरह से जोरु का गुलाम बना हुआ देख नेहा का पकौड़े खाने का मूड ही चला गया। उसने बेमन से ही दो चार पकौड़े खाए और बिना चाय लिये अपने कमरे में चली गयी। उसके मूड में हुए बदलाव को रमा जी देख रही थी। वो भी नेहा के पीछे-पीछे उसके कमरे में चली गई। और नेहा से पूछा,
” क्या हुआ नेहा? तुम ऐसे अचानक क्यों चलीं गई?”
“कुछ नहीं माँ…बस ऐसेही।” नेहा ने बेमन से कहा।
” सच बताओ बेटा…कुछ हुआ है क्या…तुम कुछ उखड़ी उखड़ी सी नजर आ रही हो।” रमा जी ने पूछा।
” माँ, सच बताऊँ तो मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है।” नेहा ने कहा।
” मेरी चिंता? वो क्यों भला ? मुझे क्या हुआ है..?” रमाजी ने आश्चर्य से पूछा।
” माँ, भैया बहोत बदल गए हैं। वो अपनी पत्नी के इशारों पर हीं चल रहें हैं। जैसे अपनी बीवी से डरते हो। पहले तो आप उन्हें कभी एक गिलास पानी भी खुद लेके नहीं पीने देती थीं। और अब वह खुद खाना परोसते है। रसोई में भाभी की मदद करते है,प्याज काटते है, चाय बनातें है, यहाँ तक कि भाभी भी उन्हें हमेशा कामों में उलझाए रखती है। वो तो अच्छा है के भाभी को घर के कामों के अलावा और कोई काम नहीं है। सारा दिन घर पर ही तो रहती है। फिर भी अपने पति से काम करवाती है। और आप भी भाभी से कुछ नहीं कहती। अभी से घर में भाभी की मर्जी चल रहीं है ऐसे में मुझे आपकी चिंता तो होगी ही ना मां।” नेहा ने चिंतित स्वर में कहा।
” अरें, लेकिन इसमें बुरा क्या है? और वो काम में हात बटा रहा है ये तो अच्छी बात है ना बेटा। इसका मतलब जोरु का गुलाम होना नहीं है, बल्कि वो एक पत्नी की कद्र करने वाला पति है। और इस बात के लिए उसकी सिर्फ और सिर्फ सराहना होने चाहिए।” रमाजी ने कहा।
” क्या मतलब है मां? तुम्हें इस बात का बुरा नहीं लगता? भैया ने कभी किसी काम में तुम्हारी मदद नहीं की, लेकिन वह भाभी के बिना कहें भाभी की मदद करते हैं क्या तुम्हें इस बात का बुरा नहीं लगता?” नेहा ने पूछा।
” नहीं…इसमें बुरा लगने की क्या बात है? उसने तो तेरे भैया को सुधार दिया है। जो मै नहीं कर पाई वो उसने कर दिखाया है।” रमाजी ने कहा।
” तुम क्या कहना चाह रही हो मैं समझी नही मां..” नेहा ने आश्चर्य से कहा।
” मेरा मतलब है कि पहले तो वो कभी किसी काम को हाथ नहीं लगाता था। क्योंकि मैंने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया। मैंने तुम दोनों को बहुत लाड़-प्यार से रखा। तुम्हारी शादी हो गई और जैसे ही तुम्हारे ऊपर जिम्मेदारियाँ आने लगीं, तुम हर काम में निपुण हो गईं।
लेकिन प्रतीक शादी के बाद भी वैसा ही था। उसका तौलिया हमेशा एक कोने में पड़ा रहता। वह एक गिलास पानी भी खुद सें नहीं लेता। शुरुआत में राधिका ने उसे अपने काम खुद करने के लिए कहा लेकिन वो बहुत ही आलसी था। उसकी आदतें नहीं बदलीं।
फिर राधिका ने युक्ती से काम करने की सोचीं। उसका तौलिया दिन भर वहीं पड़ा रहने दिया जहां उसने रखा था, उसे छुआ तक नहीं, उसके धुले हुए कपड़ों को अच्छेंसे सहेज कर रखा ही नहीं, उसकी गन्दी चीजों को वैसे ही पड़ा रहने दिया। मुझे भी कुछ काम नहीं करने दिया।
आख़िरकार प्रतीक परेशान हो गया और अपने काम ख़ुद करने लगा। धीरे-धीरे उसे अपना काम करना अच्छा लगने लगा। उसका आलस्य दूर हो गया और अब वह घर के दूसरे कामों में भी अपना हाथ बंटाता है। अब उसको घर का कोई भी काम करने में शर्म नहीं आती। जिसे मैं इतनें सालों में नहीं सुधार पाई उसे तुम्हारी भाभी ने अच्छे से सुधारा है। देखो जो मैं नहीं कर पायी उसे मेरी बहू ने आसानी से कर दिखाया ” रमाजी बोलीं।
” हाँ माँ…मैंने तो इस बारे में सोचा ही नहीं…मैने भाभी को कितना गलत समझ लिया था। तुमने तो आज मुझे रिश्तों को देखने का एक नया नजरिया दिखाया है मां।” नेहा ने आश्चर्य से कहा।
” हा बेटा, लोग देखते हैं कि महिलाएं सारा दिन घर पर रहती हैं लेकिन वे यह नहीं देखते कि जब वे घर पर रहती हैं तब भी वे हमेशा काम करती रहती हैं। कुछ पुरुष सोचते हैं कि पत्नियां केवल काम करने के लिए ही होती हैं। कुछ नौकरी करनेंवाली महिलाएं तो ऑफिस के साथ साथ घर का भी सारा काम करती हैं। ऐसे में अगर पति कभी-कभी अपनी पत्नी की मदद खुद ही कर लेता है तो इसमें क्या दिक्कत है?इन छोटी-छोटी बातों से ही पति-पत्नी के बीच रिश्ते मजबूत होते हैं।” रमाजी ने नेहा को समझातें हुए कहा।
” हाँ माँ, आप सही कह रही हैं। सचमुच मेरे भैया और भाभी लाखों में एक हैं।” नेहा ने अपनी माँ को गले लगाते हुए कहा।
” तो चलो फिर, तुम्हें अपने भैया और भाभी के हाथो से बने गरमा गरम पकोडें खानें हैं ना ?”
” हां हां… बिल्कुल…” नेहा ने हंसते हुए कहा।
और इसी तरह नेहा का दिल भी अपनी भाभी की तरफ से साफ हो गया।
समाप्त।