सुमती काकी अब थोड़ा थक गयी थी। उम्र के इस पड़ाव पर शरीर से ज्यादा वह मन से थक गई थथी। वह लगभग साठ वर्ष की थी। गांव में सिर्फ सुमती काकी और रामनारायण काका दोनो ही रहते थे। उनका बेटा, बहु और पोता, पोती दोनो शहर में रहते। रामनारायण काका को सारा गांव रामजी काका के नाम से जानता था।
रामजी काका गाँव के एक सम्मानित व्यक्ति थे। उन्होंने पूरी जिंदगी अपनी उसूलों पर जी थी। गाँव में उनकी बात का बड़ा सम्मान किया जाता। गांव में उनका पांच एकड़ का खेत था। लेकिन रामजी काका ने खेती में कड़ी मेहनत की और उसी मेहनत के दम पर पाँच एकड़ खेती और खरीद ली।
सुधाकर उनका इकलौता बेटा था। उन्होंने उसे बहुत अच्छी शिक्षा दी। जब उसे अच्छी नौकरी मिल गई तो वह काम के लिए शहर में बस गया। शहर ज़्यादा दूर नहीं था लेकिन अपनी व्यस्तता का हवाला देकर वह गांव में जरा कम ही आता। पर अपने बच्चों के साथ साल में एक बार गाँव जरूर आता।
सुमती काकी किसी चातक की भाँति सुधाकर के आने की प्रतीक्षा करती रहती थी। वह हमेशा सोचती थी कि हमें भी सुधाकर के साथ रहना चाहिए। यहां तक कि सुधाकर ने कई बार अपने पिता से कहा था कि आपको गांव की सारी जमीन बेचकर शहर चले आना चाहिए। लेकिन रामजी काका ने उन्हें मना कर दिया।
रामजी काका को अपने गाँव से गहरा लगाव था जहाँ वे जीवन भर रहे। वह वहां से दूर जाना नहीं चाहते थे। इस उम्र में भी काका और काकी दोनों खेती पर बहुत ध्यान देते। इसलिए उन्हें कभी पैसों की कोई दिक्कत नहीं थी।
जब सुधाकर गांव आता तो रामजी काका हर बार उसके हाथ में कुछ राशि रखते थे । रामजी काका ने सुमती चाची की हर इच्छा का सम्मान किया और उन्हें पूरा करने की पूरी कोशिश की। सिवाय अपने बेटे के साथ रहने की इच्छा के। सुमती चाची की दिल से इच्छा थी के वह अपने बेटा बहु और उनके बच्चो के साथ जाकर रहे। लेकिन रामजी काका को वहा जाना बिल्कुल भी गवारा नहीं था। और काका की इसी बात पर वह बहुत चिढ़ जाती क्योंकि वह उन्हें अकेला छोड़कर भी नही जा सकती थी।
काका ने काकी को कई बार समझाया लेकिन काकी अपनी ममता के हवाले मजबूर थी। इसलिए अब वह दादाजी से बड़ा ही रूखा व्यवहार करने लगी थी। काकी को अब बात बात पर गुस्सा आ जाता। जिस सुमती काकी ने जीवन भर अपने पति के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा, अब वह बात बात पर उन्हें सुनाती रहती । हालाँकि, काका उनके दुःख को जानते थे। लेकिन वे भी मजबूर थे। वह जानते थे कि जिन्होंने पूरी जिंदगी गांव में गुजारी उनका शहर में गुजारा होना मुश्किल था।
ऐसे ही दिन बीतते गए। एक दिन रामजी काका चक्कर खाकर खेत में गिर पड़े। सुमति काकी की चीख सुनकर पड़ोस के खेत से मजदूर दौड़े और काका को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। लेकिन वहां डॉक्टर ने काका को मृत घोषित कर दिया।
काकी को बहुत दुख हुआ । गांव के लोगों ने सुधाकर को फोन कर उसके पिता के चले जाने की खबर दी। अन्य रिश्तेदारों को भी सूचना दी गई। काका के वैकुंठगमन की सारी रस्में निभाई गई।
लगभग पंद्रह दिन के बाद, सुधाकर ने अपनी मा से शहर में उसके साथ रहने आने के लिए कहा। काकी तो काफी अरसे से अपने बेटे के साथ रहना चाहती थीं। सुधाकर अपनी मा को अपने साथ ले गया। काकी का मन खुश हो गया । काकी को अपने बेटे के साथ रहने के मात्र खयाल ही से काका के जाने का दुख बहुत हल्का महसूस हो रहा था।
काकी अपने बेटे के साथ रहने आई थीं। घर का एक छोटा सा कमरा साफ़ करके काकी को दे दिया गया। काकी भी इससे संतुष्ट ही थीं। काकी अपने पोते-पोतियों और बहू से बात करके बहुत खुश हुई। काकी की खुशी उनके चेहरे पर छलक रही थी। लेकिन ये ख़ुशी ज़्यादा देर तक नहीं टिक पाई।
रात को काकी की बहु काकी के खाने की थाली उनके कमरे में दे आई। काकी को अपने कमरे में डाइनिंग टेबल पर खाना खाते सुधाकर और उसकी पत्नी-बच्चों की बातचीत साफ सुनाई दे रही थी।
सभी लोग मजे से खाना खा रहे थे। परन्तु उन्होंने अपनी मा को अपने साथ भोजन करने के लिए नहीं बुलाया। काकी ने सोचा कि वह इस माहौल में नई हैं इसलिए सभी को समझने में थोड़ा समय लगेगा।। लेकिन ये दिनचर्या अब रोजमर्रा की दिनचर्या बन गई थी. बहु प्रतिदिन कमरे में एक थाली लेकर आती। बाद में थाली में गरम खाने की जगह अब बासी खाना अधिक आने लगा। अगर घर में कोई मेहमान होता तो काकी को बड़े प्यार से चेतावनी दी जाती कि वह कमरे से बाहर न निकलें।
जब काकी अपने पोते-पोतियों से बातचीत करने जाति तो वे उनको टालते हुए निकल जाते। बहू भी बहुत कम बोलती थी। सुधाकर एक फ्लैट में रहता। इसीलिए वहा पर पड़ौसियो से बात करने का तो सवाल ही पैदा नही होता। क्योंकि वहा हर समय सभीके दरवाजे बंद ही रहते। काकी कभी-कभी टहलने के लिए बगीचे में चली जाती।
एक बार, काकी अपने पैरों को आराम देने के लिए बगीचे में गयीं। कुछ देर बाद उनकी बहू भी अपनी सहेलियों के साथ वहां आ गयी। काकी ने उसे देखकर आवाज लगाई, लेकिन उसने अनसुना कर दिया। वह सुमती चाची के पास से गुजरी लेकिन उन्हें एक नजर देखा तक नहीं।
काकी को ये बात काफी अजीब लगी। लेकिन वह बहु से कुछ भी पूछ नही सकी। क्योंकि सास-बहू में कभी भी खुलकर बातचीत नहीं हुई थी। सुधाकर हमेशा काम में व्यस्त रहता था। यहां रहने से काकी को अब घुटन सी होने लगी थी।
अब काकी को काका की बहुत याद आ रही थी। वह समझ गयी थी कि उन्होंने गाँव में ही रहने का फैसला क्यों किया था। लेकिन काकी ने उन्हे नहीं समझा और उनके अंतिम दिनों में उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार किया।
अब काकी वापस गांव जाना चाहती थीं। वह वहां जाकर अकेली रह लेती। क्योंकि अब यहां उसे एक घुटन सी महसूस हो रही थी। यहाँ सभी के होते हुए भी काकी को अकेलापन महसूस होता था। उन्होंने इस बारे में सुधाकर से बात करने का फैसला किया। लेकिन काकी को सुधाकर से इस बारे में बात करने का मौका ही नहीं मिल रहा था।
इसी बीच एक दिन सुधाकर खुद काकी से बात करने उनके कमरे में आया। उसने अपनी मा से उसक हाल पूछा। काकी को उसका यू उनका हालचाल पूछना बहुत अच्छा लगा। और तभी सुधाकर से अपने दिल की बात कह दी के उन्हें गाँव वापस जाना है।
अगले दो-तीन दिनों तक सब कुछ बहुत अच्छा रहा। काकी को अब सबके साथ खाने के बुलाया जाता। काकी की बहू भी काकी से प्यार से बात करती। काकी बहुत खुश थीं। लेकिन उनकी खुशी जल्द ही खतम हो गई जब उन्होंने अनजाने में अपने बेटे और बहू को बात सुन ली।
काकी की बहू अपने सुधाकर से पूछ रही थी कि तुम गाँव के खेत बेचने के लिए कागजों पर अपनी मां के हस्ताक्षर कब कराओगे।
उन दोनों की बातें सुनकर काकी को एहसास हुआ कि काका ने गाँव का खेत और घर उनके नाम क्यों किया था। शायद उन्हें पहले से ही भविष्य का अंदाज़ा हो गया होगा। काका ने यह इंतजाम इसलिए कर रखा था ताकि काकी को इस उम्र में दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े। शायद वह सुधाकर को काकी से बेहतर जानते थे।
रामजी काका के खेत के पास एक बड़ा हाईवे बनने वाला था।इसीलिए खेत के बेचने पर अच्छी कीमत मिलती।इसलिए सुधाकर बहुत पहले से खेत बेचना चाहता था।और वह उस पैसे से अपना कारोबार शुरू करना चाहता था।
लेकिन काका ने उन्हें कभी खेत बेचने की इजाजत नहीं दी। कम से कम अपने पिता के जीवनकाल में वह खेत नहीं बेच सका। लेकिन जब काका के जाने के बाद सुधाकर अपनी मां को अपने साथ शहर ले आया, तो उसे लगा कि अब वह आसानी से खेत बेच सकता है।
लेकिन जब उसे पता चला कि उसके पिता ने सब कुछ काकी के नाम कर दिया है तो उसने मीठी-मीठी बातें करके काकी के हस्ताक्षर लेकर खेत बेचने का निर्णय लिया। इसीलिए पिछले दो-तीन दिनों से काकी को यह विशेष मेहमान नवाजी हो रही थी।
जब काकी ने सुधाकर और उसकी पत्नी को बात करते हुए सुना तो वह चौंक गई। अगर सुधाकर सीधे आता और उनसे उन कागजात पर हस्ताक्षर करने को कहता, तो शायद वो उन पर हस्ताक्षर कर भी देती। क्योंकि वह उनका इकलौता बेटा था और उनके पीछे उस ज़मीन पर उसका ही हक़ था। लेकिन सुमति काकी ने कभी ये नहीं सोचा था कि वह अपनी ही मां की भावनाओं के साथ इस तरह खेलेगा।
सुमति काकी का अपने परिवार के साथ रहने का सपना टूट गया। जहां खुद का बेटा सिर्फ अपना फायदा देख रहा हो, वहां बहू से क्या ही उम्मीद की जा सकती है। उस रात काकी को बिलकुल भी निंद नहीं आयी। उन्होंने अपना मन बना लिया और सुबह-सुबह अपना सामान बांधकर बिना किसी को बताए घर से निकल गई । वे सुबह की पहली ट्रेन पकड़ कर सीधे गांव पहुंच गये।
गांव वाले घर में जाने के बाद काकी को बहोत सुकून मिला। क्योंकि वहा काका की यादें थीं। यह घर, जो उनके सुखी और संतुष्ट दाम्पत्य जीवन का गवाह था, यही अब काकी के लिए सब कुछ था। घर में प्रवेश करते ही काकीने सबसे पहले भगवान के सामने दीपक जलाया और काका की फोटो को के सामने जाकर प्रणाम किया। एक पल के लिए उन्हें ऐसा लगा मानो दादाजी स्वयं फोटो में से उसे संतुष्ट होकर देख रहे हों।
काकी ने गांव से सुधाकर को फोन करके उनके गांव में आने की खबर बताई। साथ में यह भी बताया कि वह उसके इरादो को जान गई थी। और उनके जीवित रहते समय तक वह कभी भी अपने खेतों को बेचने की इजाजत नहीं देंगी। मां के जाने के बाद सुधाकर को इस बात का एहसास हुवा के उसने मां के साथ कितना गलत व्यवहार किया। पर अब पछताने से कोई फायदा न था। क्योंकि उसकी मां अब कभी भी उसके पास रहने के लिए नही आने वाली थी। अब सिवाय पछतावे के उसके पास कुछ भी न था। पर सुमति चाची गांव की हवा में खुली सास लेकर संतुष्ट जीवन जीने के लिए अब तैयार थी।
समाप्त।