रिश्तों की पहचान

रिश्तों की पहचान

” सरिता, अभी तो नवीन की शादी में वक्त है। तुम अभी से जाने की जिद क्यों कर रही हो। ” प्रभाकर ने सरिता से कहा।

“अरे मुझे जरा जल्दी जाना होगा। भैया ने मुझे दो बार फोन किया था। कहा कि शादी से कम से कम पंद्रह दिन पहले आना ही है।” सरिता ने बडे उत्साह से कहा।

“वो ठीक है, लेकिन पिछली बार क्या हुआ था वो तुम भूल गई हो क्या? मुझे तो लगता है कि तुमने शादी से एक या दो दिन पहले ही जाना चाहिए।” प्रभाकर ने समझाते हुए कहा।

” पिछली बार भाभी की गलती थी। भैया ने तो मुझे कुछ भी नहीं कहा था।और जब गलती भाभी की थी तो भैया को सज़ा क्यों।” सरिता ने कहा।

” वो तो ठीक है पर तुम्हे तो पता है के सुधाकर, सुनीता और बच्चे दिसंबर के महीने में हमारे घर आएंगे। क्योंकि बच्चों के स्कूल में छुट्टी होती है। इसके अलावा सुनीता की बेटी अभी मात्र सात महीने की है। उसे भी तुम्हारी जरूरत होगी।तुम चाहो तो दो-चार दिन रुक कर चले जाना।” प्रभाकर ने कहा।

“उनका तो हमेशा ही आना लगा रहता है। बच्चें छुट्टियों पर आते हैं और घर का सारा काम मुझ पर आ जाता है और अब वे मुझसे छोटी बच्ची का भी काम करवाएंगे। लेकिन इस बार मैं बिल्कुल भी ऐसा नहीं करूंगी।” सरिता ने कहा।

सरिता की बात सुनकर प्रभाकर चुप हो गया। वो जानता था कि सरिता अभी भाई के घर जाने को लेकर इतनी ज्यादा खुश है के अभी उसकी बात नहीं समझेगी। और फिर सरिता ने अपना बैग पैक करना शुरू भी कर दिया।

सरिता के भाई के बेटे की शादी थी। सरिता के भाई की स्थिति सरिता के मुकाबले बहुत अच्छी थी। उसका भाई बहुत अमीर था। सरिता की शादी तक घर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन बाद में भाई की स्थिति बदल गई। जैसे ही उसे नौकरी मिली, उनके और उनके परिवार के जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ।

सरिता का भाई जो शुरू में सरिता से बहोत प्यार करता था, परिस्थितियों के साथ बदल गया। और फिर जब कोई त्यौहार होता था तभी दोनों बहन भाई मिलते थे। भाई की पत्नी यानी सरिता की भाभी भी सरिता से कम ही बात करती थी। लेकिन सरिता को इस बात का बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता। वह अपने भाई की खुशहाल जिंदगी पर काफी गर्व था। वह उनकी तारीफ करते नहीं थकतीं। जब मायके की बातें होती तो सरिता बात कभी खत्म ही नहीं होती।

लेकिन इसके विपरीत, वह अपने ससुराल वालों की बिल्कुल भी सराहना नहीं करती थी। घर में पाँच लोग थे, सास, पति, दो बच्चे और वो। एक देवर था सुधाकर। वह अपने परिवार के साथ शहर में रहता था। साधारण नौकरी थी परंतु वह बहोत खुश थें। साल में 2-3 बार सुधाकर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गॉंव में आता था। उसे सबके साथ रहना बडा अच्छा लगता था।

सुधाकर की पत्नी सुनीता भी स्वभाव से बहुत प्यारी थी। वह लगातार सरिता के आगे पीछे घूमती रहती थी। लेकिन सरिता उन सभी से दूरी बना कर ही रहती थी। उसने बड़े रूखेपन से सुनीता को कहा था कि मुझे दीदी नहीं जेठानीजी ही कहा करो। उसे केवल उसके मायके के लोग ही अच्छे लगते थें। उसे अपने पति के भाई की गरीबी पर उसे शर्म आती थी, क्योंकि उसका भाई अमीर था। वह उठते-बैठते अपनी भोली सास का अपमान करती रहती थी।

अपने देवर से तो कभी उसने प्यार से बात नहीं की थी। और वह हमेशा सुनीता से झगड़ती रहती थी। हालाँकि सुनीता बिना कुछ कहे चुपचाप सब सुनती रहती। क्योंकि वह जानती थी कि दोनों भाइयों के बीच बहुत प्यार है और वह हमेशा चाहती थी कि पत्नियों के झगड़े से दोनों भाइयों के बीच दूरियां न आएं।

साथ ही सुधाकर और प्रभाकर के बच्चों के भी आपस में बहुत प्यार था। भाई-बहन एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते थे। एकमात्र अपवाद सरिता ही थी। सुधाकर और सुनीता का बच्चों को लेकर घर आना उसे पसंद नहीं था। बस वो प्रभाकर के सामने ये खुलकर बता नहीं पाती थी।

लेकिन इस बार सरिता बच्चों के साथ उनके आने से पहले ही अपने भाई के घर जाने वाली थी। जाने से पहले, सरिता ने अपने भाई के परिवार के लिए उपहार के रूप में महंगे कपड़े खरीदे। शादी में पहनने के लिए खुद एक साड़ी खरीदी। बच्चों को अच्छे कपड़े खरीदें। और अपने भाई के घर चली गयी।

भाई ने सरिता का अच्छेसे स्वागत किया। बच्चों से भी हालचाल पुछा। भाभी ने भी इस बार सरिता का अच्छे से स्वागत किया। भाभी सरिता से बहुत प्यार से बातें कर रही थी। सरिता पूरी तरह से अभिभूत हो गई थी। थोड़ी देर आराम करने के बाद सरिता काम में लग गई क्योंकि वह शादी वाला घर था और बहुत ज्यादा काम पड़े थे।

सरिता, जो पहले से ही घर में बहोत काम करती थी, शादी का घर होने के कारण थोड़ा और ज्यादा काम कर रही थी। घर आए मेहमानों के लिए खाना बनाना हो या दिनभर के बर्तन धोना। सरिता हर काम मन लगाकर कर रही थी। भाभी भी सरिता से मीठी मीठी बातें करके सारा काम करवा रही थी।

शादी को बस कुछ ही दिन बाकी थे। घर के सभी लोग किसी न किसी काम के लिए बाहर जाते थे। सरिता पूरे घर को ठीक से संभालती थी। शादी को दो दिन बाकी थे तो भाभी ने सरिता से कहा।

” सरितादीदी… मेरे पास घर पर सचिन की कई पुराने ड्रेस रखें हैं… मैंने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रखा है… सब अच्छें ही हैं… अगर उनमें से कोई आपके बच्चों अच्छा लगें तो देख लेना…शादी में उन्हीं में से कोई पहना देना।”

सरिता अपनी भाभी की बात सुनकर हैरान रह गई। क्योंकि उन्होंने कल सुना था कि उन्होंने नौकरानी को देने के लिए वे पुराने कपड़े निकाल कर रखें दिए हैं। सरिता ने मन में सोचा कि उनमें से कोइ ड्रेस लेने के लिए मै क्या इनके कामवाली बाई हुँ ??? मेरे भाई के बेटे की शादी है और मैं निश्चित रूप से अपने बच्चों के लिए अच्छे कपड़े खरीदने में सक्षम हूं।

लेकिन अपनी भाभी का स्वभाव जानकर सरिता ने ज्यादा कुछ नहीं कहा क्योंकि शादी सिर्फ दो दिन दूर थी। उसने बस ना कहाँ और वहाँ से चली गई। लेकिन मन ही मन उसे भाभी की बातें याद आ रहीं थी। वह अपने भाई के प्रति प्रेम के कारण ही अपनी भाभी से कुछ नहीं कहना चाहती थी।

पिछली बार भी जब सरिता सगाई में आई थी तो उसकी भाभी की एक साड़ी कहीं मिल नहीं रही थी। और वह बार बार सरिता के पास आकर कह रही थी कि तुमने गलती से साड़ी को अपने बैग में रख लिया होगा। हालांकि सरिता ने पूरा बैग खोलकर दिखाया, लेकिन वह बार-बार सरिता के पास आकर ही उसके आस पास उसे ढुँढ रही थी।

सरिता ने तब राहत की सांस ली थी जब वह साड़ी उसकी भाभी को अपनी ही अलमारी में मिली। लेकिन वह भाभी की हर बात को नजरअंदाज कर अपने भाई के लिए फिर मायके जाती रहती थी। प्रभाकर उसे कई बार समझाने की कोशिश करता है लेकिन सरिता उसकी बात सुनना ही नहीं चाहती थी। फिर प्रभाकर भी ज्यादा बात नहीं करता। इस बार भी प्रभाकर को मन मे शंका थी।

लेकिन सरिता बहोत ही शांत थी। क्योंकि उसका मानना ​​था कि भले ही उसकी भाभी ऐसी हो लेकिन उसका भाई अच्छा है। शादी से एक दिन पहले जब दूल्हे और उसके माता पिता को कपडे भेंट किए जा रहें थे तब सरिता ने भैया भाभी के लिए जो कपडे भेंट लाए थें वह सारें कपडे भाभी ने भैया के सामने ही कामवाली बाई को दे दिए। सरिता के भाई ने भी इसपर कुछ भीं नहीं कहा।

इस बात का सरिता को बहुत दुख हुआ। उसका यह मानना था ​​कि उसका भाई हमेशा उसकी तरफ था, लेकिन ये आज गलत साबित हुआ था। आज सचमुच सरिता की आँखें खुल गईं। और वह उन सभी चीज़ों को याद करती रही जिन्हें उसने पहले उपेक्षित किया था।

वो समझ गई थी के उसके भाई ने 15 दिन पहले उसे फोन करके शादी में आने का आग्रह क्यों किया था। ताकि वह घर के काम में उनकी मदद करे। और इसीलिए भाभी उससे इतनी प्यार से बात कर रहीं थी। ये जानकर उस दिन सरिता बहुत उदास हुई थी।

हालाँकि, भारी मन से वह अगली सुबह उठी और शादी में जाने के लिए तैयार हो गई। बच्चे भी तैयार हो गए। प्रभाकर घर से ही विवाह स्थल पर पहुंचने वाले थे। सांवले रंग वाली सरिता बैंगनी रंग की साड़ी में बेहद खूबसूरत लग रही थीं। सरिता को देखकर उसकी भाभी उसके पास आई और बोली।

“सरिता दीदी… हम सब शादी के लिए जा रहे हैं… आप घर का अच्छे से ख्याल रखना… घर थोडा अस्ताव्यस्त हुआ है उसे थोडा ठीक कर लेना… ताकि दुल्हन घर आये तो घर साफ सुथरा दिखे।”

” इसका क्या मतलब है भाभी ? मैं समझी नहीं। हमें तो अभी तुरंत निकलना होगा ना शादी के लिए? देर भी तो हो रही है।” सरिता चौंककर बोली।

” अरे दीदी, मै आपको बताना भूल गई। बात यह हैं कि लडकी वालें शादी साधारण तरीके से कर रहें है। हमें भी कहा गया था कि सिर्फ पचास लोग लेकर आइए। मैं आपको पहले ही बताने वाली थीं। लेकिन मुझे याद नहीं रहा। और कार में भी जगह नहीं है। और घर पर भी तो कोई भरोसेमंद और करीबी चाहिए । आप घर पर ही रहना। शाम तक हम आ ही जायेंगे।” भाभी ने कहा और सरिता के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना जाने लगी।

सरिता ने उसे टोकते हुए कहा।
” रुको भाभी।”

भाभी बीच में रुक गईं। सरिता तुरंत अंदर गई और अपना पूरा बैग लेकर वापस आ गई। और कहा…

” मैं अपने घर जा रहीं हूं। बात यह हैं कि, मेरे घर पर भी मेहमान आए हुए हैं। मैं यहां शादी के लिए आई हूं। लेकिन न तो आपके मन में मेरे लिए जगह है और न ही आपकी कार में। इसलिए बेहतर होगा कि मैं यहाँ से चली जाऊं।” सरिता ने कहा…

” अरें दीदी, आप बीच में ही कैसे जा सकती हैं??? ये शादी का घर है। अभी भी बहुत काम करना बाकी है।आप ऐसे कैसे जा सकती हैं? अभी दो चार दिन तो रुक जाइए।” भाभी ने कहा।

” आखिर आपके मन की बात बाहर आ ही गई। आपको यहां मेरी जरुरत दूल्हे की बुआ के रूप में नहीं बल्कि एक नौकर के रूप में ज्यादा हैं। आप अन्य मेहमानों का बहुत सम्मान करते हैं। क्योंकि वे संपन्न परिवार से हैं। और मेरी आर्थिक स्थिति आपकी जितनी अच्छी नहीं है। इसलिए आपने मुझे केवल घर के काम के लिए यहाँ बुलाया हैं।”

सरिता आगे बोली,
” आपने मुझे बहन होने के नाते प्यार से ये सब कम करने के लिए कहा होता तो मैं खुशी खुशी सब कर लेती। लेकिन आपने मेरे प्यार की ये कीमत लगाई है। आपने मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है। मैं बार बार यह आती हु पर इसलिए नहीं के आप लोग अमीर है। पर इसलिए क्योंकि ये मेरा मायका है। मायके के नाम पर अब सिर्फ मेरे भैया ही है मेरे पास। इसीलिए भागी दौड़ी चली आती हूं ।आप हर बार मेरा अपमान करती है पर फिर भी मैं सबकुछ भूलकर वापिस चली आती हूं। पर इस बार नहीं।” सरिता ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा।

और वह बच्चों को लेकर वहां से निकल गई। उसकी भाभी उसे देखती ही रह गयी। उसका भाई भी सिर झुकाये खडा था। क्योंकि वह भी जानता था कि उसने गलती की है और वह किसी भी कीमत पर सरिता को रोक नहीं पायेगा। इस बीच अन्य रिश्तेदार भी वहां इकटठा हो गए।

जब ये बात दूल्हे नवीन को पता चली तो उसने भी अपने माता-पिता से नाराजगी जताई। क्योंकि वो जानता था कि बुआ उससे दिल से प्यार करती है और उसने उसकी शादी की पूरी तैयारी दिल से की थी। उसे अपनी मां का व्यवहार बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। सरिता की भाभी भी अब अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा थी। लेकिन सरिता अपने फैसले पर अड़ी रहीं।

सरिता अपने भाई के घर से बाहर निकली तो सामने से प्रभाकर को बाइक पर आते देखा। उसे देखकर सरिता के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई।लेकिन प्रभाकर ने जब उसे हाथ में बैग और बच्चों के साथ अकेले देखा तो उसका मन शंकाओं से भर गया। उसने सरिता से पूछा।

” तुम अपने हाथ में बैग लेकर अकेले बाहर क्या कर रही हो ? अभी सब शादी में जानें के लिए निकल रहें होंगें न?”

” मुझे शादी में नहीं जाना… चलो घर चलते हैं… सुनीता और सुधाकर भैया भी तो घर पर होंगे अभी…” सरिता ने कहा।

” ये तुम्हे अचानक से क्या हो गया है। तुम नवीन की शादी को लेकर कितना ज्यादा उत्साहित थी। और अभी अचानक शादी के जाने से मन कर रही हो।” प्रभाकर के आश्चर्य से पूछा।

” क्योंकि अब मैं जन गई हूं के जहां आपकी कद्र न हो वहां रुकना नहीं चाहिए।” सरिता के कहा।

सरिता क्या कह रही है ये प्रभाकर समझ नहीं पा रहा था। पर अब उसके आंखों में जो पछतावे के आंसू थे वो देख कर उसे अंदाजा हो गया था के अंदर क्या हुआ होगा। बिना कोई सवाल पूछे उसने सरिता और बच्चों को बाइक पर बिठाया और घर पर लेकर आ गया। आज शायद पहली हर अपने घर आकर सरिता को इतनी ज्यादा खुशी हुई थी। क्योंकि हर बार जब वो अपने मायके से वापस आती तो अपने मायके के लिए तारीफ और ससुराल के लिए असंतुष्टि लेकर ही आती। लेकिन इस बार उसे अपने ससुराल वालों पर गर्ग महसूस हो रहा था।

घर आते ही उसकी नजर सुनीता पर पड़ी। सुनीता ने उसे देखकर कहा।

“अरे जेठानी जी, आप आ गई। मैं अभी आपके लिए चाय बनाकर लाती हूं।” इतना कहकर सरिता रसोई में जाने ही वाली थी कि सरिता उसके पास जाकर बोली।

” जेठानीजी नहीं… आज से दीदी ही बुलाना।”

सरिता के मुँह से ये शब्द सुनकर सुनीता कुछ भी न बोल पाई। उसकी हालत को भांपकर सरिता ने खुद ही उसे गले लगा लिया और दोनों की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।

कभी-कभी हम अपने आसपास के अच्छे लोगों की सराहना नहीं करते। उनकी कदर नहीं करते। इसीलिए हम कई अच्छे रिश्तों को पनपने नहीं देते। और अपना जीवन उन लोगों पर खर्च करते हैं जो हमें महत्व नहीं देते। इसलिए समय रहते अच्छे लोगों की पहचान करना बहुत जरूरी है।

समाप्त।

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