वैशाली बस से नीचे उतरी। अपने बेटे सारांश को गोद मे उठाया और एक हाथ में बैग लिए अपने घर की ओर चलने लगी।
रास्ते से गुजरने वाले लोग उसकी तरफ सहानुभूति पूर्वक देखते और अपने रास्ते निकल जाते। उसकी हालत देखकर साफ पता चल रहा था कि हर बार की तरह इस बार भी उसके पति ने उसे बेरहमी से पीटा है। एक पुरानी साड़ी, हाथ में एक छोटा सा बैग, शरीर पर लिपटी साड़ी की परत और गोद में एक चार साल का लड़का। रास्ते मे कोई जान पहचान वाला मिलकर उससे कोई सवाल ना पूछे इसलिए वो बिना किसी के ओर देखे जल्दबाजी में अपने घर की ओर बढ़े जा रही थी।
तेजी से चलकर आखिर वो अपने घर आ ही गई।उसकी भाभी ने दरवाजे पर जैसे ही उसे आते देखा देखकर उन्हें सारी स्थिति का अंदाजा हो गया। जैसे ही वैशाली घर पहुंचीं, उससे किसी ने न ही ठीक से बात की और ना ही उसका हल पूछा। क्योंकि उसका यहॉ आना अब किसी को ज्यादा पसंद नहीं था। होगा भी कैसे? क्योंकि वो हर दो चार महीने में एक बार आती थी। वो भी उसके ससुराल से तंग आ कर। और उसके मायके वाले लोग क्या कहेंगे ये सोचकर उसे फिर से वापस जाने को कहते।
वह अपने पति की मार-पीट और सास के छल कपट से बहुत तंग आ चुकी थी। घर पर उसके पिता को उससे बहुत सहानुभूति थी। लेकिन मां को इस बात की चिंता थी कि लोग क्या कहेंगे। इसलिए उसकी मां बार बार उसकी सास से माफी मांगती और वैशाली को वापस ससुराल भेज देती। और मायके से दुसरा कोई उसकी मदद नहीं कर पाता था।
लेकिन बात करने के लिए कुछ नहीं बचा था। उसका पति स्वभाव से बहुत ही गुस्सैल था। दिनभर काम करके वापस आने पर सास उसके पती को वैशाली के बारे में बुरा भला बताती रहती। फिर बात कितनी भी छोटी क्यों न हो, उसका पती वैशाली को बहुत मारता। वह भय से काँपती रहती। पर पति को उसपे जरा भी तरस न आता। साथ ही उसकी ननद भी पास ही रहती। वह भी वैशाली के खिलाफ अपने भाई और मां के कान भरती रहती।
वैशाली और उसके मायके वालों ने पहले सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद स्थिति बदल जाए। लेकिन बच्चा होने के बाद बात और भी बिगड़ गई। सास हमेशा वैशाली को उसके बेटे से जितना हो सके उससे दूर रखने की कोशिश करती थी। लेकिन फिर बच्चा अपनी माँ के लिए बहुत रोता तब ना चाहते हुए भी उसे वैशाली के पास जाने देती।
बेटे के छह महीने का होने के बाद वैशाली फिर से काम पर जाने लगी। वैसे देखा जाए तो वह अपने छोटेसे बच्चे को छोड़कर काम पर नहीं जाना चाहती थी लेकिन अपनी सास के सामने कुछ नहीं कह न पाती। घर में पहले से ही सास चाय की पत्ती और शक्कर जैसी साधारण चीजों को भी ताले में रख देती थीं। घर का बासी खाना बर्बाद न हो, इसके लिए वैशाली को वही बासी खाना खिलाती।
घर में सास को अपनी, पती की और देवर की भी सॅलरी देनी पड़ती थी। वैशाली ही नहीं बल्कि उसका पति और देवर भी अपनी मां को बिना बताए एक पैसा भी खर्च नहीं कलाकार पाते थे। वह अगर सास से किसी चीज के लिए पैसे मांगती तो उसकी सास गुस्सा हो जाती और फिर से उसके पती से बुराई करती इसके बाद वह फिर से उसकी पिटाई करता। उसने पहले पहले तो पति को समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ। अब तक उसे एहसास हो गया था कि उसके पति को समझाने से कोई फायदा नहीं होगा।
लेकिन अब सास ने हद पार कर दी थी। वह इसके बेटे के सामने ननद के बेटे को खूब अच्छी चीजें खिलाती थी। और जब इसके बेटे ने भी वह चीज मांगी तो उसे पीटा जाता था। सारांश अब दो साल का हो गया था। वह भी अब खाने-पीने की चीजों के लिए जिद करने था।
लेकिन सास उसे घर का बना सादा खाना खिलाती थी और अपनी ही बेटी के बेटे को मिठाई और अच्छी अच्छी चींजे खिलाती। वैशाली ने एक-दो बार यह देखा। उसने सोचा कि आज नहीं तो कल सास उसके बेटे को भी लाड प्यार करेंगी। लेकिन उसकी सास ने न तो उसे दुलार किया और न ही स्नेह से कभी कुछ खिलाया।
पर अब वैशाली के सब्र का बांध टूट रहा था। जब वह काम रहती, तो उसका मन हमेशा अपने बच्चे में लगा रहता। उसने कुछ खाया होगा कि नही? वह लगातार सोचती रहती कि उसकी सास ने उसे मारा तो नहीं होगा? अंत में अपनी सारी हिम्मत बटोरते हुए उसने अपने पति से कहा कि वह तब तक काम पर नहीं जाएगी जब तक सारांश थोड़ा बड़ा नहीं हो जाता।
और इसी कारण उसके पतिने उसके साथ मारपीट की थी। और इसी वजह से वह एक बार फिर अपने मायके आ गई थी। उसे देखकर उसकी माँ बोली।
” वैशाली… अब क्या हुआ… और कितने दिन ऐसा ही चलता रहेगा तुम्हारा ? सोचा था बेटा होने के बाद सब ठीक हो जाएगा… लेकिन यहाँ तो सब पहले जैसा ही है… हर दो-तीन महीने में तुम यहा चली आती हो। तुम्हारी उम्र की शादीशुदा लड़कियां अपने-अपने घरों में अच्छे से रह रही हैं और तुम्हारा वही रोना धोना चल रहा है कब से।”
वैशाली को अपनी माँ से ऐसी ही बातों की उम्मीद थी। लेकिन हमेशा की तरह निराश ना होते हुए उसने दृढ़ निश्चय के साथ अपनी मां से कहा।
“चिंता मत करो माँ…तुम्हें मुझसे ज्यादा दिन तक परेशानी नहीं होगी अब।”
वैशाली की यह बात सुनकर माँ हैरान रह गईं। माँ को वैशाली की बातों में दृढ़ निश्चय का आभास हो गया था। माँ ने वैशाली से पूछा कि
” तुम्हारे मन में आखिर चल क्या रहा है। तुम क्या करने का सोच रही हो? तुम्हारें दिमाग में क्या चल रहा है ?”
” मैं अब ना तो मायके में रहुंगी ना ही ससुराल में। मैं एक कामकाजी महिला छात्रावास में रहूंगी। मैंने इसके बारे में सारी जानकारी पता की है l। वहां वे निराश्रित महिलाओं को रोजगार और रहने के लिए जगह देते हैं। आप चिंता ना करो। मैं जल्द ही यहाँ से चली जाऊँगी। हमेशा के लिए।” वैशाली ने कहा।
” क्या कहा तुमने? ये क्या बोल रही हो तुम? अपने बच्चे के साथ किसी निराधार लोगों के छात्रावास में रहने जा रही हो? जब तुम्हारे पास तुम्हारा खुद ससुराल हैं? तुम्हारे ससुराल वालें क्या कहेंगे? और लोगों के सवालों का हम क्या जवाब दें?” माँ चिल्लाकर बोली।
अब माँ की आवाज सुनकर घर के सब लोग वहाँ आ गए।वैशाली के पिता, जो बाहर से इन मॉं बेटी की बातचीत सुन रहे थे, वहाँ आए और वैशाली की माँ से कहा।
“हमारी बेटी बेसहारा महिलाओं के छात्रावास में रहने की बात कर रही है, जबकि उसके मायका और ससुराल ऐसे दो घर हैं। तुम ही सोचो सच में कितनी बेबस और दुखी होकर ये फैसला किया होगा उसने। और उसका साथ देने के बजाय, तुम सोच रही हो कि लोग क्या कहेंगे। जब उसके मायके वालें ही उसका साथ नहीं दें रहें है, तो ससुरालवालो से क्या ही उम्मीद लगाएगी वो ?” उसके पिता ने कहा।
” अरे लेकिन।” माँ ने कहा। लेकिन पापा ने मां को बीच में ही रोक कर कहा.
“अब चुप हो जाओ। कितनी बार मैंने तुमसे कहा कि हमें अपनी बेटी के साथ खड़े रहना चाहिए। लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी। इसीलिए शायद उसे अबतक इतना कुछ सहना पड़ा। लेकिन हमने कभी उसका साथ नहीं दिया। उसकी तकलीफ नहीं समझी। बचपन से हमने इसे इतने नाजों से पाला और इसकी शादी होते ही मानो इससे मुंह फेर लिया।और इसलिए आज माँ-बाप होते हुए भी वह बेसहारा लोगों की तरह जीने की बात कर रहीं है। कम से कम अब तो लोग क्या कहेंगे ये सोचना छोड का अपनी बेटी के बारें मे सोंचो।”
पिता की बात सुनकर उसके भाई ने कहा।
“हाँ माँ, पिताजी ठीक कह रहे हैं।वैशाली के मन कें बारें हमने आज तक कभी नहीं सोचा। हमने खुद देखा है कि उसके ससुराल वाले उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं। हमारे पास भगवान की दया से किसी चीज की कमी नहीं है। चाहे दीदी हमेंशा के लिए ही यहा क्यो न रहें है, वह हम पर कभी बोझ नहीं होगी। तो क्यों हम उसे बार-बार उसकी मर्जी के खिलाफ वहाँ भेजते है। क्योंकि लोग कहते है की लडकी अपनी ससुराल में ही अच्छी लगती है इसीलिए ?…दीदी के यहाँ रहने से क्या फर्क पडेगा?”
अपने ससुर और पति की बातें सुनकर अब वैशाली की भाभी को भी वैशाली के दुख का अहसास हुआ। सच कहे तो आज उसे अपने पति पर गर्व महसूस हो रहा था। जो देर से ही सही पर अपनी बहन के लिए आवाज उठा रहा था। उसने भी अपनी सास से कहा।
” मुझे भी पिताजी और इनकी बातें सही लग रही है मॉं।… हमें वैशाली दीदी को समझना चाहिए।”
सबकी बातें सुनकर वैशाली गदगद हो गई। आज शायद पहली बार उसके मायके वाले उसके साथ खड़े रहने की बात कर रहे थे। यहां तक कि आज उसकी मां को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था। दो साल के सारांश को देख उसकी मां को भी आज बेटी के दुख का अंदाजा हो रहा था। जब वैशाली घर आती तो पड़ोस की औरतें उन्हें बातें सुनाती, इसलिए उसकी माँ को उसे हमेशा घर वापस भेजने की जल्दी रहती।
पर आज उसकी मां को अपने किए पर दुख हो रहा था। बेटी का घर बसाने के चक्कर में वो उसके दुखों को नजरअंदाज कर रही थी। बिना किसी गलती के बेटी को सबकुछ सहने के लिए कहे जा रही थी। पर अब जब सबने उन्हें अपनी गलती का अहसास कराया तो वैशाली की मां ने भी वैशाली का साथ देने की ठानी। मां ने वैशाली को आश्वस्त कराया कि अब जबतक वैशाली ना चाहे तबतक वो उसे ससुराल वापस जाने को नहीं कहेगी। सबने मिलकर ये तय किया के वैशाली चाहे तो वो पति से तलाक लेकर भी हमेशा के लिए मायके रह सकती है।
उधर उसके ससुराल में सभी सोच में पद गए थे के इस बार वैशाली को गए ज्यादा दिन हो गए है। काफी दिनों के बाद भी वैशाली घर नहीं लौटी तो वैशाली का पति खुद उसके मायके यह देखने आया कि वैशाली लौटी क्यो नहीं? उसने सोचा कि हमेशा की तरह उसके माता-पिता वैशाली को ही दोषी मानेंगे और माफी माँग कर उसे उसके साथ घर भेज देंगे।
लेकिन इस बार उसके माता-पिता ने उसे वापस भेजने से साफ मना कर दिया और बडे आत्मविश्वास से कहा कि वैशाली तब तक घर वापस नहीं आएगी जब तक आप अपना व्यवहार नहीं सुधारेंगे। वैशाली के घरवालों की बाते सुनकर वैशाली के पति को एहसास हुआ कि इस बार वैशाली का परिवार उसे हमेशा की तरह इतनी आसानी से वापस नहीं भेजेगा। इसलिए वह उसे साथ लिए बिना ही वापस चला गया।
इसके बाद भी जब वैशाली कई दिनों तक घर नहीं आई तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कभी भी वैशाली के मन के बारे में सोचा ही नहीं। उसे लगता कि वैशाली का साथ तो उसके मायके वाले भी नहीं देते तो वो क्यूं दे। इसीलिए ससुराल में उसके साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। इस बात का वैशाली के पति को अच्छे से एहसास हो रहा था। इसलिए उसने फैसला किया कि इस बार वह खुद उससे और उसके मायके के लोगों से माफी मांगेगा और उसे और अपने बेटे सारांश को फिर से वापस घर ले आएगा। क्योंकि इतने सालों में वह वैशाली की अच्छाइयों को अच्छे से जान चुका था।
लेकिन उसकी मां ने इसका कड़ा विरोध किया। फिर उसने अपनी मां से कहा कि अब तक उनकी बातें सुनकर उसने वैशाली पर बहोत अन्याय किया, उसे मारा, बहुत दुख दिया। लेकिन अब आप हमारी जिंदगी को हमारे हिसाब से जीने दो। अबतक तो वैशाली की सासूमां को भी इस बात का अहसास हो गया था के उनका बेटा अब उनकी बातों में नहीं आने वाला। इसीलिए अब वो अपने बेटे के फैसले में कुछ नहीं बोल सकी।
तब वैशाली का पति उसके मायके गया और वैशाली के साथ साथ सभी घरवालों से भी अपने किए के लिए माफी मांगी। और वादा किया कि इसके बाद वो कभी भी वैशाली को कोई तकलीफ नहीं होने देगा। अपने पति की आंखों में पछतावे के आंसू देख वैशाली ने भी उसे एक आखिरी मौका देने का फैसला किया और उसके मायके वालों ने उसे इस शर्त पर ससुराल भेज दिया कि अगर उसे जरा सी भी परेशानी हुई तो वह सीधे अपने घर वापिस चली आएगी और वो भी हमेशा के लिए।
उसके बाद वैशाली को उसके ससुराल में कभी कोई तकलीफ नहीं हुई। उसे कभी हल्के में नहीं लिया गया। वह सही मायने में गृहलक्ष्मी बन गईं और उसका गृहस्थ जीवन सुखों से भर गया।
पहले जब उसके मायके वाले उसका साथ नहीं देते तो उसे ससुराल में कोई सम्मान नहीं मिलता, लेकिन जब उसके मायके वालों ने उसका मजबूती से साथ दिया, तो उसे अपने ससुराल वालों से आदर और सम्मान दोनों मिले। एक लड़की के लिए उसके माता-पिता का हर परिस्थिति में साथ रहना बहुत जरूरी होता है। माता पिता के साथ से वह किसी भी समस्या का सामना कर सकती है।
समाप्त।