कुछ गलतियों की माफी नहीं होती

कुछ गलतियों की माफी नहीं होती

 

” पिछली बार मैंने गले से हार उतार कर अलमारी में रखा था…मुझे अच्छी तरह से याद है…” सुशीला चाची गुस्से में बोल रही थीं।
“अरे माँ…अच्छी तरह से देख लो …वही रखा होगा…अलमारी से कहाँ जायेगा…?”सुरेश ने कहा।


“कहाँ जायेगा ?…तुमहारी बीवी को छोड़कर इस घर में कौन है जो मेरी अलमारी को हाथ लगाएगा…मेरी अलमारी से निकालकर अपने मायके वालो को दे दिया होगा..वैसे भी वो तो है ही फटीचर …” सुशीला चाची ने गुस्से से कहा।


“नहीं मां जी…भगवान कसम मैंने आपकी अलमारी को छुवा तक नहीं…।” सरला ने डर से कांपते हुए कहा।


“तुम्हारे सिवा कौन होगा ?… दिन भर तुम्हारे और मेरे अलावा घर में होता ही कौन है … सीधी तरह से बताओ तुमने कहां रखा है… वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।” सुशीला चाची ने जोर से बहु पर चिल्लाते हुए कहा…।
“सच कह रही हूँ माँजी…मुझे कुछ भी नहीं पता…।” सरला रोते हुए बोली।
“माँ…सरला ऐसा कुछ नहीं करेगी…वो आपसे झूठ कभी नहीं बोलेगी…आप फिर एक बार अलमारी में ढूंढिए ना…।” सुरेश ने अपनी माँ से कहा।

“तुम कहना क्या चाहते हो… मैं झूठ बोल रही हूं ?.. क्या तुम्हे अपनी मां की बातों पर विश्वास नहीं है ?…मुझसे ज्यादा अपनी पत्नी पर विश्वास करते हो जो कल परसो ही इस घर में आई है…मैंने अपनी अलमारी में अच्छे से देखा लेकिन हार नही मिल रहा है…मैं तुम्हें कह रही हूं, सुरेश…यह सब तुम्हारी पत्नी का ही काम है…।”


सुशीला चाची सरला की एक बात भी नहीं सुन रही थी। हालाँकि, सरला रोते हुए कह रही थी कि उसने अपनी सास की अलमारी को छुआ तक नहीं, लेकिन उसकी सास कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं थी। मां के सामने सुरेश की एक न चली। आख़िरकार सुशीला चाची ने सरला पर चोरी का इल्जाम लगाकर उसे घर से जाने को कह दिया।


सरला अपनी सास के पैरों पर गिर पड़ी लेकिन उसकी सास ने अपना फैसला नहीं बदला। सुरेश ने सोचा कि सरला को कुछ दिन मायके में छोड़ आता हूं । तब तक माँ का गुस्सा शांत हो जायेगा। फिर उसे वापस ले आऊंगा। यही सोच कर सुरेश सरला को मायके छोड़ आया।


सरला और सुरेश की पिछले साल ही शादी हुई थी। सरला के मायके की माली हालत थोड़ी ख़राब थी। पर सरला दिखने मे बड़ी ही खूबसूरत थीं। इसके अलावा गरीबघर की बेटी थी। इसलिए सुशीला चाची बहू बनाकर ले आईं ताकि वह हमेशा उनके अहसानों के तले दबी रहे और चुपचाप उनकी बाते सुने।


सरला हर काम में माहिर थी। सरल , सीधी और मधुर स्वभाव की थी । कभी भी किसी को पलटकर जवाब न देती। जो मिलता उसीमे संतुष्ट रह लेती। वह अपने परिवार को ही अपना सब कुछ मानती। लेकिन सुशीला चाची ने कभी भी उसकी परवाह नही की। ना ही कभी उसे सराहा। उल्टा सरला की छोटी-छोटी गलतीयो पर भी उसके मायके वालो को ताने देती। लेकिन सरला चुपचाप सारी बातें सुन लेती।

क्योंकि वह अपने पति सुरेश से बहुत प्यार करती थी। सुरेश भी सरला से बहोत प्यार करता था। उनके जीवन में एक-दूसरे की मौजूदगी ने उनके जीवन को खूबसूरत बना दिया था । इसलिए सुशीला चाची सरला से कुछ भी कहें, सरला को बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता था । क्योंकि उसके लिए अपने पति का प्यार ही सबकुछ था।


इस बीच सुशीला चाची बहुत बीमार हो गईं। उस समय सरला ने सुशीला चाची की बहुत सेवा की। इसलिए चाची सरला के प्रति थोड़ी नरम होने लगी थी। सरला को लगा कि अब सब ठीक हो गया है। लेकिन आज उनका का दो तोले का सोने का हार कही खो गया और चाची ने सीधे सरला पर हार चुराने का आरोप लगाया। और सब कुछ बिगड गया।


सरला के घर छोड़ने के दो महीने बाद भी सुशीला चाची का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। सरला को घर लाने की जगह अब उन्होंने सुरेश की दूसरी शादी करने की ठानी। जब सुरेश ने सरला के साथ तलाक लेने से इनकार कर दिया तो शांता चाची ने उसे जान देने की धमकी दी।


सुरेश ने अपनी मां को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन सुशीला जी कुछ भी सुन नहीं रही थीं। आख़िरकार अपनी मा की जान देने की धमकी से डरकर सुरेश दूसरी शादी के लिए तैयार हो गया। सरला के मायके के लोग बहुत गरीब थे। वह पहले से ही चोरी के आरोप से परेशान और शर्मिंदा थे।


इसलिए जब सुशीला चाची ने तलाक की बात कही तो वह समझौता किए बिना तलाक के लिए तैयार हो गए। सरला को आशा थी की सुरेश उसे कभी भी नही छोड़ेगा। पर सुरेश ने भी जब अपनी मां की बातो मे हामी भरी तो उसकी आशाएं अधूरी रह गई। सुशीला चाची ने तुरंत तलाक की सारी कार्यवाही पूरी की और सुरेश की दोबारा शादी कर दी ।

इधर सरला को भी दूसरी शादी के लीये रिश्ते आने लगे। उसके घरवालों को अविनाश का रिश्ता काफी पसंद आया। अविनाश सरकारी नौकरी में था। उसकी एक छोटी बेटी थी। उसकी पत्नी की किसी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी । सरला के माता-पिता ने सरला और अविनाश की शादी करवा दी। अविनाश एक अच्छा लड़का था। उस से शादी करने के बाद सरला कुछ ही दिनों में अपना अतीत भूल गई और अपनी नई जिंदगी में खुशी खुशी ढल गई।


लेकिन यहां सुरेश सरला को नहीं भूल सका। उसकी दूसरी पत्नी मनीषा बहुत झगडालू महिला थीं। वे दोनो छोटी-छोटी बात पर झगड़ने लगते थे। धीरे-धीरे मनीषा ने सुशीला चाची के सारे अधिकार छीन लिये।


सुशीला चाची की स्थिति अब इतनी अच्छी नहीं रही। वे सरला पर अपना शासन चलाती। लेकिन मनीषा के आगे ऊनकी एक नही चलती थी। सुरेश भी मां से नाराज था क्योंकि उसकी माँ ने सरला को घर से निकाल दिया था और सुरेश की दूसरी शादी कर दी थी। इसलिए चाची अब अपने ही घर में अजनबी की तरह रहती थीं।


हार की चोरी की घटना को आठ साल बीत चुके थे। सुशीला चाची के घर में दिवाली की सफ़ाई चल रही थी।सुशीला चाची के कमरे की लकड़ी की अलमारी अब पुरानी हो चुकी थी। इसलिए इसे रंग देने का फैसला किया। उसके लिए सुरेश पहले उस अलमारी की सफाई कर रहा था।


सफाई करते समय अचानक उसे अपनी मां का सोने का हार अलमारी के अंदर दरार में फंसा हुआ दिखाई दिया। हार को देखते ही सुरेश सिर पर हाथ रखकर बैठ गया। उसी हार को चुराने का आरोप लगाते हुए सरला को अपमानित किया गया और घर से बाहर निकाल दिया गया था। उसने सुशीला चाची को हार दिखाया।


उसे देखकर सुशीला चाची भी अपना सिर पकड़ कर बैठ गई। उनका दिमाग अब बिलकुल भी काम नही कर रहा था। उनको एहसास हुआ के उन्होंने कितनी बड़ी गलती की थी। उन्होंने अपनी ग़लतफ़हमी के चलते अपने बेटे का सुखी दाम्पत्य जीवन बर्बाद कर दिया था। सुरेश को जीवन भर का दुख दिया था।


एक मासूम लड़की को चोर बनाकर फंसाया गया। शायद उसी का परिणाम आज चाची को भुगतना पड़ रहा था। सुशीला चाची अब पछतावे में डूब गईं थी। उनको अपने किये पर पछतावा हो रहा था। लेकिन अब हर चीज़ के लिए बहुत देर हो चुकी थी। हर किसी का जीवन बदल गया था।


उस दिन के बाद सुरेश ने सुशीला चाची से बात करना बंद कर दिया।सरला के मासूम चेहरे को याद करते हुए सुरेश ने कई रातें दुख में जागकर बिताई थीं। इसके बाद चाची अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाईं। और इन सब चिजो से अनजान सरला अविनाश के साथ एक खुशहाल जिंदगी जी रही थी।


समाप्त।

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